आज भी भारत में प्रतिबंध के बावजूद गंदी नालियों और सेप्टिक टैंकों की सफाई इंसानों से कराई जाती है. ताजा सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि पिछले छह सालों में इस तरह की सफाई करने के दौरान 347 लोगों की मौत हुई है.
छह सालों में 347 नाला सफाईकर्मी की मौत
लोकसभा में सामाजिक न्याय मंत्रालय ने माना है कि भारत में इंसानों से गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों को साफ कराने की प्रथा अभी भी जारी है। इंसानो द्वारा नालों की सफाई के चलते सैकड़ों लोगों की जान जा रही है. मंत्रालय ने बताया कि इस खतरनाक काम को करने के दौरान 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, 2021 में 36 और इस वर्ष यानि 2022 में अभी तक 17 सफाई कर्मियों की जान जा चुकी है. दरअसल कोविड महामारी के दौरान भी यह प्रथा चलती रही और आज भी चल रही है. कम से कम 18 राज्यों के आंकड़े मंत्रालय के पास हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक इन छह सालों में इस तरह की सफाई के दौरान सबसे ज्यादा यानि 51 लोग सिर्फ उत्तर प्रदेश राज्य में मारे गए हैं.
यूपी के बाद दूसरे नंबर पर तमिलनाडु है, जहां 48 लोगों ने अपनी जान गवाई है. वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 44, हरियाणा में 38, महाराष्ट्र में 34 और गुजरात में 28 लोग मारे गए. इस क्लीनिंग सिस्टम को बंद करने की मांग करने वाले एक्टिविस्ट्स का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में आज भी गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई इंसानों से करवाई जाती है.
कानून पर सवाल
हालांकि सरकारें इन मौतों को लेकर खेद जरूर व्यक्त करती हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इस समस्या के निवारण में कानून भी अभी दो कदम पीछे ही है. मैनुअल स्केवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम के तहत भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को 2013 में ही प्रतिबंधित कर दिया गया था. लेकिन इस कानून में कुछ शर्तों के साथ गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए इंसानों से सफाई कराने की इजाजत है.
इन शर्तों के तहत सफाई के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल अनिवार्य है, लेकिन अक्सर इस नियम का पालन नहीं किया जाता. सफाई कर्मियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के नालों और टैंकों में उतरने के लिए कहा जाता है. नालों में लंबे समय से गंदगी के पड़े होने की वजह से जहरीली गैसें बन जाती हैं और अक्सर यही गैसें सफाई कर्मियों की जान ले लेती हैं.
इस समस्या को लेकर रमोन मैगसेसे पुरस्कार विजेता और सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने एक अभियान भी छेड़ा है. विल्सन का कहना है शुरू से ही इस देश के मासूम नागरिक सीवरों और सेप्टिक टैंकों में मारे जाते हैं और संसद बस मौन हो कर देखती रहती है.
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Yasmin